मैया तुझे पुकारता हूँ मैं,
मईया तुझे पुकारता हूँ मैं,
अपना जीवन ये,
रो रो गुजारता हूँ मैं,
मईया तुझे पुकारता हूँ मैं,
मईया तुझे पुकारता हूँ मैं।।
तर्ज – पलकों का घर तैयार।
जबसे होश संभाला मैंने,
धोखा ही है खाया,
जिसको अपना समझा मैंने,
सब ने ही ठुकराया,
भिखी अँखियों से तुमको,
निहारता हूँ मैं,
मईया तुझे पुकारता हूँ मैं,
मईया तुझे पुकारता हूँ मैं।।
सबका होना चाहा मैंने,
कोई हुआ ना मेरा,
स्वारथ के रिश्तों ने मुझको,
चारों ओर से घेरा,
झूठे रिश्तो का बोझा,
उतारता हूँ मैं,
मईया तुझे पुकारता हूँ मैं,
मईया तुझे पुकारता हूँ मैं।।
नहीं है कोई सहारा मेरा,
मुझको सहारा दे दो,
बीच भंवर में मेरी नैया,
उसको किनारा दे दो,
हूँ अकेला तभी तो,
माँ हारता हूँ मैं,
मईया तुझे पुकारता हूँ मैं,
मईया तुझे पुकारता हूँ मैं।।
खोल के मैया तुझको मैंने,
अपना दिल दिखलाया,
अपनी तकलीफों का ‘हरी’ ने,
सारा हाल सुनाया,
मुझको अपना लो,
दामन पसारता हूँ मैं,
मईया तुझे पुकारता हूँ मैं,
मईया तुझे पुकारता हूँ मैं।।
मैया तुझे पुकारता हूँ मैं,
मईया तुझे पुकारता हूँ मैं,
अपना जीवन ये,
रो रो गुजारता हूँ मैं,
मईया तुझे पुकारता हूँ मैं,
मईया तुझे पुकारता हूँ मैं।।