बिना रघुनाथ को देखे,
नहीं दिल को करारी है,
हमारी मात की करनी,
सकल दुनिया से न्यारी है,
बिना सियाराम को देखे,
नहीं दिल को करारी है।।
लगी रघुवंश में अग्नि,
अवध सारी उजाड़ी है,
विमुख श्री राम से कीन्हा,
ऐसी जननी हमारी है,
बिना सियाराम को देखे,
नहीं दिल को करारी है।।
सुना जब तात का मरना,
मानो बरछी सी मारी है,
भरत सिरमौर धरनी में,
यही कहता पुकारी है,
बिना सियाराम को देखे,
नहीं दिल को करारी है।।
बड़ा व्याकुल हुआ बेसुध,
नयन से नीर जारी है,
पडूँ रघुनाथ चरणों में,
यही ‘तुलसी’ विचारी है,
बिना सियाराम को देखे,
नहीं दिल को करारी है।।
बिना रघुनाथ को देखे,
नहीं दिल को करारी है,
हमारी मात की करनी,
सकल दुनिया से न्यारी है,
बिना सियाराम को देखे,
नहीं दिल को करारी है।।