माँ अपने दरबार,
क्यों ना मुझको बुलाया है,
ना चरणों में बिठाया है,
मां अपने दरबार,
क्यों ना मुझको बुलाया है।।
तर्ज – एक तेरा साथ।
महिमा महारानी,
तेरे भवन की मैं,
जब भी सुनता हूँ,
मुझको तू मैया कब,
दर पे बुलाएगी,
मैं दिन ये गिनता हूँ,
जिसको तू चाहे,
वो चलके दर तेरे आया है,
क्यों मुझको ना बुलाया है,
मां अपने दरबार,
क्यों ना मुझको बुलाया है।।
बेटा हूँ मैं तेरा,
माँ अम्बे जगदम्बे,
क्यों मुझको दूर करा,
दर्शन बिना तेरे,
क्या हाल है मेरा,
तू आके देख जरा,
एक तेरा ही नाम,
मैंने मन में रमाया है,
क्यों मुझको ना बुलाया है,
मां अपने दरबार,
क्यों ना मुझको बुलाया है।।
चिट्ठी मुझे भी माँ,
दर से तेरे आए,
करूँ माँ क्या जतन,
कब तू बुलाएगी,
मैं झूमता आऊं,
मैया मैं तेरे भवन,
बेटे का नाता,
क्यों ना मुझसे निभाया है,
क्यों मुझको ना बुलाया है,
मां अपने दरबार,
क्यों ना मुझको बुलाया है।।
माँ अपने दरबार,
क्यों ना मुझको बुलाया है,
ना चरणों में बिठाया है,
मां अपने दरबार,
क्यों ना मुझको बुलाया है।।