मेरे सतगुरु दीनदयाल काग से हंस बनाते हैं ।। टेक ।।
अजब है – गुरुओं का दरबार ।
भरा जहाँ भक्तों का भण्डार ।।
शब्द अनमोल सुनाते हैं ।
कि मन का भरम मिटाते हैं ।। मेरे सतगुरु…… ।।
गुरु जी देते सत का ज्ञान ।
जीव का हो ईश्वर से ध्यान ।।
वो अमृत खूब पिलाते हैं
कि मन की प्यास बुझाते हैं ।। मेरे सतगुरु…… ।।
गुरु जी नहिं लेते कछु दान ।
फिर रखते दुःखियों का ध्यान ।।
वो अपना माल लुटाते हैं ।
अनेकों कष्ट उठाते हैं ।। मेरे सतगुरु…… ।।
कर लो गुरु चरणों का ध्यान ।
तुमसे करते भक्त बयान ।।
सारे दु:ख गुरुजी मिटाते हैं ।
कि भव से पार लगाते हैं ।। मेरे सतगुरु…… ।।